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How to Get Ahead of 99 Percent People.
Thu Jun 19, 2025
जब भी मैं अलिगढ़-मथुरा की गलियों से निकलता हूँ, मोबाइल स्क्रीन में गुम चेहरों की भीड़ मुझे चीख-चीख कर एक ही बात बताती है — दुनिया तेज़ी से दौड़ तो रही है, पर दिशा भूली बैठी है। कोई रील में फँसा है, कोई नोटिफिकेशन की झड़ी में, और कोई फाल्स्टार्ट लेकर बार-बार गिर रहा है। ऐसे में एक सीधा-सादा सवाल पैदा होता है: क्या वाकई हम इस भीड़ के साथ बहते रहेंगे या अपने अंदर छिपे असाधारण सामर्थ्य को जगा कर 99 % लोगों से आगे निकलेंगे? यही गाइड उस अनसुने रास्ते की रोशनी है जिस पर चलकर आप अपना समय, ऊर्जा और दिमाग इस तरह निवेश कर सकते हैं कि अगले कुछ ही सालों में आपकी उपलब्धियाँ भीड़ के शोर से अलग सुनाई दें।
डिजिटल नशे का जाल और उससे निकलने की ज़रूरतबीते दस सालों में स्मार्टफोन ने हमें इतना नज़दीक से जकड़ लिया है कि सुबह की पहली झपकी और रात की आख़िरी साँस तक स्क्रीन हमारे इर्द-गिर्द मंडराती रहती है। आँकड़े बताते हैं कि औसतन एक व्यक्ति प्रतिदिन चार घण्टे से ज़्यादा स्क्रीन पर बिताता है।
इसका सीधा मायना है कि अगले पचास सालों में आप अपनी कुल आयु के आठ साल बिना कुछ ठोस हासिल किये सिर्फ उँगलियाँ फिसलाते गुज़ार देंगे। यह डिजिटल नशा धीमे ज़हर की तरह है; जब तक असर दिखता है, तब तक देर हो चुकी होती है। नए-नवेले रील्स और मीम्स तात्कालिक डोपामिन का इंजेक्शन तो देते हैं, पर बदले में आपकी गहरी एकाग्रता, रचनात्मकता और सपनों की स्पष्टता छीन लेते हैं।
इस नशे से मुक्त होना पहला निर्णायक कदम है। जैसे कोई शराबी घर से शराब हटा देता है, ठीक वैसे ही आपको फालतू नोटिफिकेशन, अनावश्यक ऐप और निरर्थक सोशल मीडिया स्क्रॉल से दूरी बनानी होगी। यही दूरी आगे चलकर आपकी सबसे बड़ी पूँजी बनेगी।ध्यान और ज्ञान की ताक़तध्यान वह खज़ाना है जिसे जितना खर्च करें उतना ही बढ़ता है। जब आप फोन का शोर बंद करके किताब का सन्नाटा सुनते हैं, तो मन हौले-हौले स्थिर होता है। स्थिर मन गहराई से ग्रहण कर सकता है, तेज़ी से विचार बुन सकता है और लंबे समय तक याद रख सकता है।
वहीं ज्ञान सिर्फ जानकारी का ढेर नहीं; वह वह दिशा है जो शोर में भी आपको रास्ता दिखाती है। CEOs की औसत किताब-पढ़ाई हर साल साठ पुस्तकों तक होती है। जितना अधिक आप पढ़ते हैं, उतना ही आप अलग तरह के समाधान, नए व्यवसायिक मॉडल और व्यक्तिगत विकास के सूत्र खोज पाते हैं। यहाँ मुद्दा संख्या का नहीं, निरंतरता का है। एक घंटे प्रतिदिन भी अगर गहन अध्ययन को दें, तो एक साल में तीन सौ पैंसठ घण्टे की बौद्धिक पूँजी खड़ी हो जाती है, जो आने वाले वर्षों में ब्याज समेत लौटती है।
मनोरंजन बनाम शिक्षा: सूक्ष्म फर्क, विशाल परिणाममनोरंजन तुरन्त उपलब्ध संतुष्टि देता है; शिक्षा देर से मिलने वाला गहरा संतोष। दोनों में अंतर वही है जो तुरन्त जलने वाली तीलियों और देर तक जलते दीपक में होता है।
जब कोई व्यक्ति रोज़ नेटफ्लिक्स पर तीन घण्टे बिताता है, तो वह उन घण्टों में अपना मन हल्का करता है, पर भविष्य को भारी बोझ सौंप देता है। इसके विपरीत, वही समय अगर उत्कृष्ट ऑनलाइन लेक्चर, ऑडियोबुक या किसी प्रामाणिक कोर्स में निवेश हो जाए, तो ज्ञान चुपचाप गहराता है। शिक्षा वह अदृश्य मुकुट है जो थोड़े-थोड़े प्रयासों से सिर पर सजता है, और फिर जीवन-भर नेतृत्व की चमक देता रहता है। अंतर बस आदतों का है। आदतें विकसित होते-होते आपकी दूसरी प्रकृति बन जाती हैं, और वही प्रकृति आखिर में किस्मत का रूप ले लेती है।
आदत-निर्माण की युक्तियाँ: दिनचर्या का सूक्ष्म पुनर्गठनआदतें कोई भव्य समारोह में स्थापित नहीं होतीं; वे रसोई, बाथरूम और ड्राइव करने के बीच के सूक्ष्म मौकों में आकार लेती हैं। जब आप स्नान कर रहे हों, तब मोटिवेशनल पॉडकास्ट चलाएं।
दाँत ब्रश करते समय अगले दिन के लक्ष्य मन में दोहराएँ। यात्रा में संगीत के बजाय ऑडियोबुक सुनें। इन छोटे-छोटे पलों में शिक्षा घोलने से शुरू में आपको असहजता महसूस होगी, पर यही असहजता कुछ हफ्तों में ताक़त बन जाती है। आपका मस्तिष्क धीरे-धीरे नया वायरिंग रचता है, जिससे मनोरंजन की लत कमजोर और ज्ञान का झुकाव मजबूत होता जाता है। छह महीने बाद आप पायेंगे कि वही घण्टे, जो पहले व्यर्थ लगते थे, अब आपकी विशेषज्ञता का आधार बन चुके हैं। यही जुड़वां असर आपको 99 % लोगों से अलग खड़ा करेगा।
डिजिटल डिटॉक्स: तकनीक से दोस्ती, गुलामी नहींतकनीक का बहिष्कार समाधान नहीं; समाधान है तकनीक के साथ नियमित, उद्देश्यपूर्ण रिश्ता। अपना फोन दो हिस्सों में बाँटिये — एक निजी, एक पेशेवर। निजी फोन में सोशल मीडिया न रखें। पेशेवर फोन में भी नोटिफिकेशन साइलेंट रखें; आपको जब आँकड़े देखने हों तभी उन्हें खोलें। दिनभर में निश्चित समय तय करें जब आप ई-मेल या सोशल मीडिया चेक करेंगे, बाकी समय उन्हें न छुएँ। ऐसे नियम खुद-पर लगाए बगैर फोकस की खेती नहीं होती। जब फोन देखने का आवेग उठे और वह आखों से ओझल हो, तो आप विकल्प ढूँढ़ेंगे। यही खालीपन पढ़ाई, रचनात्मक सोच और सूझ-बूझ का अवसर बनता है।
धीरे-धीरे आपको महसूस होगा कि फोन की तानाशाही टूट चुकी है, और कमान फिर से आपकी मुट्ठी में है।गहरी काम-संख्या नियम: कम करो, पर पूरा करोकई लोग एक साथ दस परियोजनाएँ लेकर हर ओर आधा-अधूरा काम फैलाते हैं। परिणामतः नतीजे झीने होते जाते हैं और आत्म-सम्मान भी रसातल में। गहरी काम-संख्या नियम कहता है कि एक समय में एक या दो प्राथमिक परियोजनाओं पर ध्यान लगाओ, पर उन्हें छाती से लगाकर पूरा करो। “फिनिशर्स” दुनिया में दुर्लभ हैं, इसलिए उनकी कमाई, प्रतिष्ठा और प्रभाव भी विशेष है।
जब आप किसी भी प्रोजेक्ट को पूरी कायदे से अंतिम बिंदु तक ले जाते हैं, तो आपके भीतर पूरा-करने-की-क्षमता की मांसपेशी बनती है। यही मांसपेशी आगे चलकर किसी भी विशाल लक्ष्य को संभालने की क्षमता देती है और आपको औसत भीड़ से अलग मशालचिह्न की तरह चमकाती है।
लम्बी दूरी का दृष्टिकोण: तात्कालिक इनाम से परे देखनामनुष्य मस्तिष्क डोपामिन के त्वरित झटकों का आदी है। पर जो लोग अगली तिमाही, अगले पाँच या दस साल का विज़न रखते हैं, वे खेल के नियम बदल देते हैं। जब आप एक नयी स्किल सीखना शुरू करते हैं, तो शुरुआती महीनों में उतना रोमांच नहीं मिलता जितना एक व्यावसायिक सफलता या वायरल वीडियो में मिलता है। लेकिन वही स्किल तीन साल बाद जब इनकम, स्वतंत्रता और पहचान का स्तम्भ बनती है, तब लोग पूछते हैं: “भाई, यह सब कैसे किया?” जवाब होता है: “मैंने तात्कालिक मनोरंजन त्याग कर लंबी दूरी का आनंद चुना।” लम्बी दूरी का दृष्टिकोण आपको कठिन समय में भी आगे बढ़ने की हिम्मत देता है, क्योंकि आपका ध्यान उस बड़े इनाम पर होता है जो अभी दृष्टि-पटल पर नहीं, पर आपकी रणनीति में साफ-साफ लिखा है।
आत्म-नियंत्रण और भावनात्मक अनुशासन कोई भी बाहरी सफलता तब तक अधूरी है जब तक भीतर भावनात्मक स्थिरता न हो।
सफलता के साथ आलोचनाएँ, अपेक्षाएँ और तनाव भी बढ़ते हैं। अगर मन प्रतिक्रियाओं से भर जाएगा, तो आप बार-बार फ़ोकस खो देंगे।
भावनात्मक अनुशासन का अर्थ है— प्रेरणा मिलने पर भी शांत रहना, असफलता मिलने पर भी संतुलित रहना। ध्यान, प्राणायाम, नियमित व्यायाम और सान्निध्यपूर्ण संवाद इसमें मदद करते हैं। जब आपका भीतर शांत और सशक्त होता है, तो बाहरी तूफ़ान आपको अपनी जड़ों से नहीं हिला पाते। यही स्थिरता आगे चलकर आपकी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को पुख्ता करती है। आप ना सिर्फ तेज़, बल्कि टिकाऊ भी बनते हैं — और यही संयोजन आपको 99 % से अलग संपूर्ण लीडर बनाता है।
निरंतरता का चमत्कार: छोटे-छोटे कदम, विशाल किलेइतिहास उठाकर देखिये; जिन लोगों ने दुनिया बदली, उनमें से अधिकतर लगातार छोटे-छोटे कदम उठाते रहे। चाहे राइट बंधुओं का हवाई जहाज़ हो या एस्टी लॉडर का सौंदर्य साम्राज्य, हर सफर सूक्ष्म-सूक्ष्म प्रयोगों से शुरू हुआ। आप भी अगर प्रतिदिन सिर्फ आधा पन्ना लिखना, पंद्रह मिनट पढ़ना या तीस मिनट अभ्यास करने का नियम बना लें, तो एक साल में जो नींव तैयार होगी, वह दूसरों की पाँच साल की नाकाम कोशिशों पर भारी पड़ेगी। निरंतरता का चमत्कार यही है — आपके छोटे-छोटे प्रयास समय के साथ गुणनफल बनकर सामने आते हैं, और देखते-देखते सफलता की इमारत खड़ी हो जाती है।
वास्तविक उदाहरण: अलिगढ़ से सिलिकॉन वैली तक मेरे एक शिष्य ने अलिगढ़ की छोटी-सी किराना दुकान से अपने डिजिटल मार्केटिंग सफर की शुरुआत की थी।
वह हर सुबह दुकान खोलने से पहले आधा घण्टा SEO पर पढ़ता, शाम को ग्राहक कम होने पर छोटे-छोटे ब्लॉग पोस्ट लिखता। तीन साल बाद वही लड़का फुल-टाइम डिजिटल एजेंसी चला रहा है और सिलिकॉन वैली के स्टार्ट-अप्स की ऑनलाइन स्ट्रैटेजी सँभाल रहा है। फर्क सिर्फ इतना था कि उसने मनोरंजन को सीमित कर ज्ञान को प्राथमिकता दी, और हर दिन थोड़ा-सा, पर सधा हुआ कदम चलता रहा।
यह उदाहरण साबित करता है कि संसाधन की कमी, शहर या परिवेश उतनी बाधा नहीं जितनी हमारी स्वयं की आदतें हैं। आदतें बदलते ही परिदृश्य बदल जाता है।रचनात्मकता और विश्राम का संतुलन लगातार काम-काम-काम से भी आप थकान के शिकार हो सकते हैं और फिर वही उन्मनस्कता आपको वापस पुराने व्यसनों में धकेल देगी।
इसलिए रचनात्मक उत्पादन और गहरा विश्राम एक सिक्के के दो पहलू हैं। जब आप फोकस करके सीखते-करते हैं, तब बीच-बीच में डिजिटल-फ्री जंगल-सैर, संगीत-सुनना, या परिवार के साथ निर्बाध समय बिताना भी आवश्यक है। यह विश्राम रचनात्मकता का पुनर्भरण करता है, आपके मस्तिष्क में नये कनेक्शन बनने देता है, और आपको पुनः तीव्रता से काम पर लौटने की ऊर्जा देता है।
विश्राम की उपेक्षा करेंगे तो उत्साह की आग जल्दी बुझ जाएगी; संतुलित विश्राम करेंगे तो आग धीमी पर स्थायी जलेगी।सामाजिक वृत्त की भूमिका: साथ किसका?आप जिन पाँच लोगों के साथ सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं, धीरे-धीरे उन्हीं का औसत बन जाते हैं। अगर उनके लिए मनोरंजन प्राथमिकता है, तो शिक्षा-केंद्रित दिनचर्या पर टिके रहना कठिन होगा।
इसलिए अपने सामाजिक वृत्त का सूक्ष्म निरीक्षण करें। क्या आपके आसपास ऐसे लोग हैं जो किताबें पढ़ते हों, सवाल पूछते हों, लक्ष्य-उन्मुख हों? यदि नहीं, तो ऑनलाइन कम्युनिटी, मास्टरमाइंड ग्रुप या कोचिंग प्रोग्राम में जुड़े जहाँ विकास-मुखी माहौल मिले। ऐसा स्वस्थ दबाव आपकी गति बनाए रखता है। यह दबाव डराने वाला नहीं, बल्कि सहायक होता है; जो आपको ऊँचा दिखाता है, नीचे नहीं खींचता।
स्वयं-अध्ययन से कार्यान्वयन तक: ज्ञान को क्रिया में ढालनाअनेक लोग किताबों का ढेर लगा लेते हैं पर जीवन में बदलाव नहीं दिखता, क्योंकि अध्ययन के बाद कार्यान्वयन नही होता। ज्ञान तभी सार्थक है जब वह दैनिक निर्णयों, योजनाओं और प्रोजेक्ट्स में मूर्त रूप ले। हर पढ़ी गयी किताब के लिए एक-एक कार्रवाई तय करें: क्या बदलूँगा, क्या बनाऊँगा, किसे मदद करूँगा। जब विचार कागज़ से उठकर कर्म बनते हैं, तब सफलता एक विचार नहीं, वास्तविक परिणाम बनती है।
कार्यान्वयन के बिना ज्ञान रेशमी तकिया-सा है — सुंदर दिखता है पर टिकाऊ परिणाम नहीं देता। जब आप ज्ञान को क्रिया में ढालना आरम्भ करते हैं, तो आपका आत्म-विश्वास, नेटवर्क और इनकम तीनों समानुपाती बढ़ते हैं।
विपरीत दिशा में दौड़: भीड़-मन से सर्जना-मन तकजब सब लोग अगले सोशल ट्रेंड पर वीडियो बना रहे हों, आप एक गहन केस-स्टडी लिखें। जब सब क्रिप्टो के उतार-चढ़ाव पर बहस कर रहे हों, आप अपने मुक्कमल कौशल को और निखारें। भीड़-मन हमेशा शॉर्ट-कट ढूँढ़ता है, सर्जना-मन धीमी पर ठोस नींव रखता है। विपरीत दिशा में दौड़ने का साहस चाहिए; पर यही साहस पाँच साल बाद आपको प्रचलित चेहरे नहीं, प्रतिष्ठित विशेषज्ञ बनाता है। भीड़ के शोर में खो जाने के बजाय अलग सुर में गाना शुरू करें।
शुरुवात में कम ताली मिलेगी, पर वही अलग सुर आगे चलकर नई धुनों का सिरमौर बनेगा।आत्म-मूल्यांकन: प्रगति का साप्ताहिक आइनाबिना नाप-जोख के कोई निर्माण कार्य नहीं होता; वही नियम व्यक्तिगत विकास पर लागू होता है।
हफ्ते में एक दिन, शांत माहौल में बैठकर खुद से पूछें: इस सप्ताह क्या सीखा, कितना लागू किया, कहाँ व्यर्थ समय दिया, अगले सप्ताह क्या सुधार करूँगा। यह आत्म-मूल्यांकन प्रगति की गति बढ़ाता है। जैसे खेत में समय-समय पर निराई-गुड़ाई से फसल पुष्ट होती है, वैसे ही नियमित समीक्षा से आपके लक्ष्य साफ होते हैं, पिछली गलतियाँ सामने आती हैं, और नई रणनीति उभरकर तैयार होती है।
यह आदत आपकी विकास-यात्रा को निर्देशित करती है और बिखराव से बचाती है।वित्तीय बुद्धिमत्ता: निवेश मानसिकता का निर्माणकमाई बढ़ेगी तो भय भी बढ़ेगा — कि कहीं फिर हाथ से न निकल जाए।
वित्तीय बुद्धिमत्ता इस भय को अवसर में बदलती है। जल्दी खर्च करने के बजाय जानबूझकर सीखने, सिस्टम बनाने और संपत्ति खड़ी करने में निवेश करें। किताबें, कोर्स, सही उपकरण और ऑटोमेटेड वर्कफ़्लो भविष्य का लाभांश हैं। जब आपका पैसा स्वयं काम करने लगेगा, तब समय और मानसिक ऊर्जा उच्च-स्तरीय सृजन में लग सकेगी। ऐसे में आप न केवल 99 % से आगे होंगे बल्कि आने वाली आर्थिक चुनौतियों से भी सुरक्षा पाएँगे।सेवा-भाव: सफलता का अंतिम सोपानसिर्फ स्वयं के लिए आगे बढ़ना भी एक हद तक ही आनंद देता है।
जब आपका ज्ञान, समय और संसाधन दूसरों की उन्नति में लगने लगते हैं, तब सफलता को स्थायी अर्थ मिलता है। सेवा-भाव इंसान की चेतना को विस्तार देता है, अहंकार को संतुलित रखता है और नेटवर्क को आत्मीयता से जोड़ता है। यह सेवा-भाव आपको मानसिक सम्पन्नता देता है जो धन या पदोन्नति से कहीं गहरा है। अंतत: वही लोग युगों तक याद किए जाते हैं जिन्होंने दूसरों के उत्थान में अपना योगदान डाला।
यह योगदान ही आपकी महानता का सबसे प्रामाणिक प्रमाण-पत्र बनता है।निष्कर्ष: आपका अगला कदमअब समय है मोबाइल की चकाचौंध से बाहर आकर किताब की स्याही में डूबने का, भीड़ के शोर से उठकर आत्म-संवाद की गहराई में उतरने का, मनोरंजन के तात्कालिक सुख से आगे बढ़कर शिक्षा के दीर्घकालिक आनन्द को अपनाने का।
निर्णय कठिन हो सकता है, पर इसका फल असाधारण है। जब अगली बार कोई रविवार यूँही रील्स देखते-देखते बीत जाए तो याद रखिए — वही समय किसी स्किल में लगा होता तो जीवन-भर का लाभ दे सकता था।
आज की छोटी जीतें कल की बड़ी विजय बनती हैं। इस गाइड में लिखी हर बात को अपने दिन की लय में उतारिए। आने वाले महीनों में ही आप पायेंगे कि 99 % लोग जहाँ थे, वहीं रह गये, और आपने लक्ष्य की ओर एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाते हुए अपनी कहानी ही बदल दी।
Follow and Subscribe, और यदि आप वास्तविक परिवर्तन के लिए तैयार हैं तो मुझसे सीधे सम्पर्क करिए। हम मिलकर आपकी डिजिटल यात्रा को वेग देंगे। आपकी सफलता, आपका भविष्य, आपका भारत—सभी आप ही की प्रतीक्षा में हैं।
Jai Hind, Jai Bharat.
Guruij Sunil Chaudhary (Suniltams)
India’s Leading Digital Success Coach, SEO Expert, and Founder of Career Building School, empowering over 20,000 individuals and 220+ coaches to build thriving digital empires with clarity, confidence, and complete support. As the author of Power of Thoughtful Action and creator of CBS Digital Empire, he is a visionary mentor on a mission to transform Bharat into a global hub of empowered digital entrepreneurs.